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मैं अक्सर बेसहारा कुछ मरीज़ों की दवा लाई / अनु जसरोटिया
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मैं अक्सर बेसहारा कुछ मरीज़ों की दवा लाई
तो शुक्रराने में इक दिन उन ग़रीबों की दुआ लाई
वो रोटी सेंकती है जब तो उसके हाथ जलते हैं
मैं मां के वास्ते बाज़ार से चिमटा उठा लाई
खिले गुन्चे मसर्रत के फ़ज़ा ने फूल बरसाये
तेरा पैग़ामे-उल्फ़त आज जब बादे-सबा लाई
अज़ीज़ों की जुदाई, फुरकते एहवाब, रंजो ग़म
मैं हाथों की लकीरों में न जाने क्या लिखा लाई
दुआओं का मेरी माँ की नतीजा है कि मैं अक्सर
दुआओं से कभी शौहरत, कभी इज़्ज़त कमा लाई
न क्यंू हो नाज़ मुझ को शेर गोई पर ‘अनु’ आख़िर
ये मेरे वास्ते ऊचां मुक़ामो-मरतबा लाई