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मैं अदना आदमी / विनोद कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
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मैं अदना आदमी
सबसे ऊँचे पहाड़ के बारे में चिंतित हुआ
इस चिंता में मैं बाहर ही बाहर रहा आया
एक दिन इस बाहर को कोई खटखटाता है
जैसे आकाश धरती को खटखटाता है
हवा को खटखटाता है
जंगल के वृक्षों
एक-एक पत्तियों को खटखटाता है
देखो तो आकाश के नीचे
खुले में है
साथ में कोई नहीं है
दूर तक कोई नहीं
पर कोई इस खुले को खटखटाता है।
कौन आना चाहता है?
मैं कहता हूँ
अंदर आ जाइये
सब खुला है
मैंने देखा मुझे
हिमालय दिख रहा है।