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मैं ख़ुश हूँ / गोपीकृष्ण 'गोपेश'

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            मैं ख़ुश हूँ, नाराज़ नहीं हूँ !

मैंने माना — मानव का गुण हंसना है, रोना भी,
लेकिन अपने दुख में उसने अलसित अँगड़ाई ली !
            मैंने जो कुछ जाना-माना,
            दुनिया ने सब जाना,
            जिसे न कोई जाने-समझे
            मैं तो ऐसा राज़ नहीं हूँ !
            मैं ख़ुश हूँ, नाराज़ नहीं हूँ !!

मैंने माना — घृणा-प्यार का एक रूप है मानव,
कभी-कभी सब सुन लेते हैं उसके अन्तर का रव;
            सोच रहा हूँ मैं — अपना है
            रोग स्वयं ही रोगी,
            बोल रहा हूँ, डोल रहा हूँ,
            हंसता हूँ, नासाज़ नहीं हूँ !
            मैं ख़ुश हूँ, नाराज़ नहीं हूँ !!

एक पथिक, जिसका दस डग घर, कुछ गाता आता है,
चन्दा बनकर कभी चमकता, तारे बन जाता है,
            और किसी के चिर-यौवन से
            जिसका जीवन डगमग,
            जिसका स्वर-स्वर क्षणभर में ही
            धरा-गगन में गूँजा,
            उसकी एक गूँज मैं भी हूँ,
            किन्तु ... किन्तु आवाज़ नहीं हूँ !
            मैं ख़ुश हूँ, नाराज़ नहीं हूँ !!