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मैं तेरे दर्द की दुनिया बहाल रखती हूँ / सिया सचदेव
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मैं तेरे दर्द की दुनिया बहाल रखती हूँ
छुपा के दिल ही में रंज ओ मलाल रखती हूँ
हज़ार तल्ख़ियाँ शामिल रही मगर फिर भी
भुला के ख़ुद को मैं तेरा ख़्याल रखती हूँ
सबब तो ऐसा नहीं कोई खास भी लेकिन
मैं अपने ज़ब्त को क़सदन निढाल रखती हूँ
ज़मीर ओ ज़ात मेरी ज़ुल्म के मुक़ाबिल हैं
मैं अपने आप में इतनी मजाल रखती हूँ
सिया ये मुझपे हुआ है मेरे ख़ुदा का करम
मैं शेरगोई में थोड़ा कमाल रखती हूँ