भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं हिफाज़त से तेरा दर्द ओ अलम रखती हूँ / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
मैं हिफाज़त से तेरा दर्द ओ अलम रखती हूँ
और ख़ुशी मान के दिल में तेरा ग़म रखती हूँ
मुस्कुरा देती हूँ जब सामने आता है कोई
इस तरह तेरी जफ़ाओं का भरम रखती हूँ
हारना मैं ने नहीं सीखा कभी मुश्किल से
मुश्किलों आओ दिखादूँ मैं जो दम रखती हूँ
मुस्कुराते हुए जाती हूँ हर इक महफ़िल में
आँख को सिर्फ़ मैं तन्हाई में नम रखती हूँ
है तेरा प्यार इबादत मेरी पूजा मेरी
नाम ले कर तेरा मंदिर में क़दम रखती हूँ
दोस्तों से न गिला है न शिकायत है सिया
क्यों के मैं अपनों से उम्मीद ही कम रखती हूँ