यज्ञ-हवन पुन्न-दान धर्म म्ह, बंदे श्रूत जचाले / हरीकेश पटवारी
यज्ञ-हवन पुन्न-दान धर्म म्ह, बंदे श्रूत जचाले,
बेईमानी छल-कपट छोड़कै, ध्यान हरि म्ह ला ले || टेक ||
अमर रह ना सदा कोई, या दो दिन की जिन्दगानी,
बुरे कर्म से नरक मिलै, शुभ से स्वर्ग निशानी,
भजनानन्दी तिरते देखे, डूबैगे अभिमानी,
धर्मराज कै रह ना जाकै, पाप-पुन्न कोई छानी,
करणी के फल मिलै जरूरी, चाहे जितना जतन बणालें ||
अवधपुरी म्ह हरिश्चंद्र नै, आच्छा कर्म करया था,
धर्म समझ कै भंगी के घर, जाकै नीर भरया था,
श्मशाना की चौकी ओटी, मन म्ह नही ड़रया था,
खीच कटारा रानी के, गल ऊपर आप धरया था,
काशी पार करी संग राजा, रैयत-फ़ौज रिसाले ||
मोरधज से दानी हो गये, जाणै प्रजा सारी,
लेण परीक्षा गये द्वारे, अर्जुन-कृष्ण मुरारी,
लड़के का लिया खून मांग, धरी कंवर पै आरी,
खुद लड़के नै चिरण लागे, आप पिता-महतारी,
शुभकरणी कर पदवी पागे, इसी और कौणं पाले ||
ध्रुव भगत से बालकपण म्य, यश दुनिया म्ह करगे,
बहोत घणे इस दुनिया के म्ह, मौत गधे की मरगे,
व्यपारी व्यपार करै थे, धन जोड़ कै धरगे,
पापी डुब्बे मझधार म्ह, राम भजनिये तिरगे,
गाम धनौरी हरिकेश तू, लयदारी में गाले ||