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यहाँ तक रौशनी आती कहाँ थी / शारिक़ कैफ़ी
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यहाँ तक रौशनी आती कहाँ थी
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रचनाकार | शारिक़ कैफ़ी |
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प्रकाशक | |
वर्ष | 2008 |
भाषा | हिंदी |
विषय | |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- बरसों जुनूँ सहरा सहरा भटकाता है / शारिक़ कैफ़ी
- एक मुद्दत हुई घर से निकले हुए / शारिक़ कैफ़ी
- इंतिहा तक बात ले जाता हूँ मैं / शारिक़ कैफ़ी
- सुस्त क़दमों से घर लौटता हूँ / शारिक़ कैफ़ी
- वार पर वार कर रहा हूँ मैं / शारिक़ कैफ़ी
- वो पल आख़िर मयस्सर हो गया है / शारिक़ कैफ़ी
- होने से मिरे फर्क ही पड़ता था भला क्या / शारिक़ कैफ़ी
- कोई सोए रेगज़ार आया नहीं / शारिक़ कैफ़ी
- कुछ भी मंजिल से नहीं लाए हम / शारिक़ कैफ़ी
- अभी मंजिल कहाँ मेरी नज़र में / शारिक़ कैफ़ी
- सफ़र से मुझको बददिल कर रहा था / शारिक़ कैफ़ी
- हैं अब इस फिक्र में डूबे हुए हम / शारिक़ कैफ़ी
- कब यकीं करता था मैं इज़हार में / शारिक़ कैफ़ी
- ख़्वाब वैसे तो इक इनायत है / शारिक़ कैफ़ी
- तरह तरह से मिरा दिल बढाया जाता है / शारिक़ कैफ़ी
- कहीं न था वो दरिया जिसका साहिल था मैं / शारिक़ कैफ़ी
- मैं किस्सा सुनाने ही में खो गया / शारिक़ कैफ़ी
- रात बेपर्दा लगती है मुझे / शारिक़ कैफ़ी
- अभी तक ख़ामुशी कुछ सुन रही है / शारिक़ कैफ़ी