यहाँ मुहब्बत भी कोई तिज़ारत से कम नहीं / कबीर शुक्ला
यहाँ मुहब्बत भी कोई तिज़ारत से कम नहीं।
सब ताज़िर हैं यहाँ कोई सनम-वनम नहीं।
सभी तकमील-ए-आरज़ू में बेसुध बेहोश हैं,
सब अग्यार हैं यहाँ कोई महरम-वहरम नहीं।
बेएतिबारों पर तू भी क्या एतबार करता है,
सभी वादे झूठे हैं कोई कसम-वसम नहीं।
बारहाँ जज्बातों की बोली लगते देखता है,
फाइदा-परस्त लोगों का है कोई धरम नहीं।
अपने अह्दे-अलम में खुश रहना सीख ले,
सब खुशियों में ग़म में कोई फ़राहम नहीं।
कब तक भागेगा इन कमजर्फ़ों के पीछे तू,
कौन-कौन खुश नहीं है कौन बरहम नहीं।
तू सीख ले दिलों की सौदेबाजियाँ करना,
तू आकिल हैं कोई नादान नाफ़हम नहीं।
झुकी डालियों से ही गुल तोड़े जाते हैं,
ताब ला कीमती बन अरजाँ-ओ-नरम नहीं।
तू भी ज़रा मश्के-सितम कर ले 'कबीर' ,
तू ज़रा खुशियाँ चुनना सीख ग़म-वम नहीं।