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यही कह रहे हैं सभी अज़्म वाले / सिया सचदेव

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यही कह रहे हैं सभी अज़्म वाले
मुझे आज़मा ले मुझे आज़मा ले

यहाँ सच का जैसे रिवाज उठ गया है
सभी ने ज़ुबाँ पर लगाए हैं ताले

है मुफ़लिस के दिल में यही इक तमन्ना
जले घर मैं चूल्हा, मिलें दो निवाले

भरोसा है या रब तिरी रहमतों का
ये जीवन की कश्ती है तेरे हवाले

अगर पथ अधूरा है इंसानियत का
तो किस काम के हैं ये मस्जिद शिवाले

किसी माँ का दिल कैसे ये सह सकेगा
कि बच्चों का घर और खाने के लाले

सिया ज़िंदगी का ये मक़सद है तेरा
तू ख़ुद मुस्कुरा और सबको हँसा ले