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यह अमावस पूजनीया / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र
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फिर अमावस के मिले हैं चिह्न हमको
इस गली में
हाँ, अमावस वही
जिसमें रात होती है समूची
चाँद दिखता नहीं फिरता
चाँदनी की लिये कूची
रात-भर अक्षत बिखरते इस गली की
अंजली में
यह अमावस पूजनीया
यह नहीं परछाईं रचती
रोशनी के छल-कपट से
गली सदियों रही बचती
खो गई थी - तभी से ये दिन कटे हैं
बेकली में
लौट आएगी अमावस
गली फिर सपने रचेगी
और अगली पीढ़ियों को
रजनिगंधा साँस देगी
अभी तो यह साँस खोई सूर्यकुल की
धाँधली में