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यह झील भी / इंदुशेखर तत्पुरुष
Kavita Kosh से
अकेला मैं ही नहीं
नहाया हूं झील में
हर छपाक पर उछलती
नहायी है यह झील भी मुझमें
डुबकियां लगाने पर
गुदगुदे प्रतिरोध के साथ
अपनी गहराईयों में उतारती मुझको
नहायी है यह झील भी।
ठिठुरती अंगुलियों के पोरवों की सिकुड़न में
उतर आयी हैं हिलोरें
नाखुनों में नीलापन झील का
निचुड़ते कपड़ों में धूजता-सा
खड़ा हूं इसके तट पर
तरंगित यह भी मेरे तीर पर
घाट अभी गीले हैं।