यह शिल्प भी तुम्हारा ही है, आँखों में झाँको भी तो!
अचरज की क्या बात? तुम्हारे
दीप्त नहीं किस नभ में तारे!
अपनी आँखों इन आँखों का तारक-धन आँको भी तो!
देखो, क्या कविता बनती है!
क्या-क्या भाव-सुधा छनती है!
इनका दिल इनके ही दिल पर एक क़लम टाँको भी तो!
बिन डूबे मोती पाते हैं,
जो इन पर ढर उतराते हैं!
एक बार इनके जल-पथ से जीवन-रथ हाँको भी तो!