भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यात्रा में / इंदुशेखर तत्पुरुष
Kavita Kosh से
यात्रा में हर बार
पुरातन कुछ छूट जाता है
और आ मिलता कुछ नवीन।
यह पगथलियों के साथ आने वाले
अथवा अंजुरी में भर जाने वाले
मिट्टी-जल-फूल-पत्तियों के बारे में नहीं है।
यह आकाश के तारों के लिए है
जो आंखों में आ बसते हर यात्रा में
और छूट जाते
आंसुओं की तरह।