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यादों के साथ प्राण सँवरते कभी नहीं / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
यादों के साथ प्राण सँवरते कभी नहीं।
मिट्टी बिना तो फूल भी खिलते कभी नहीं॥
हो आस्था का दीप तेल आस का मिले
बाती बिना तो दीप भी जलते कभी नहीं॥
आ भी जा इंतज़ार की अब हद है हो चुकी
बिन तृप्ति प्राण देह में रहते कभी नहीं॥
हमने तुम्हारे प्यार में तन मन भुला दिया
हँसते हैं लोग तुम ही देखते कभी नहीं॥
हिमखंड के बिना न है कोई द्रवित हुआ
पत्थर जो धूप में हैं पिघलते कभी नहीं॥
वृंदा विपिन की धूल की चुटकी जिन्हें मिली
उनमें विविध विकार उपजते कभी नहीं॥
रत कृष्ण नाम विश्व को गोखुर बना लिया
हो सिंधु या मझधार वह बहते कभी नहीं॥