भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
युगमंगलस्तोत्र / प्रेमघन
Kavita Kosh से
युगमंगलस्तोत्र
क्या आपके पास इस पुस्तक के कवर की तस्वीर है?
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
रचनाकार | बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |
---|---|
प्रकाशक | हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन, प्रयाग |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविता संग्रह |
विधा | स्फुट काव्य |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- मुरली राजत अधर पर / प्रेमघन
- लसत ललित सारी हिये / प्रेमघन
- दोऊ गल बाहीं दिये / प्रेमघन
- लाल लली तन हेरि कै / प्रेमघन
- प्रातहि उठि दोऊ / प्रेमघन
- मंगल प्रातहि उठे / प्रेमघन
- मंगल मय हरि सिर ऊपर / प्रेमघन
- मंगल राधा कृष्ण नाम / प्रेमघन
- वृखभानुजा माधव सुप्रातहि / प्रेमघन
- कभौ निकुंज सून मैं / प्रेमघन
- भले भाल पर बिन्दु सिन्दूर सोहै / प्रेमघन
- छहरैं मुख पै घनश्याम से केश / प्रेमघन
- इत सोहत मोरन की कँलगी / प्रेमघन
- हरि गावते तान रसाल खरे / प्रेमघन
- कालिन्दी के तीर / प्रेमघन