भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वृखभानुजा माधव सुप्रातहि / प्रेमघन
Kavita Kosh से
वृखभानुजा माधव सुप्रातहिं भानुजा तट पै खरे।
दोऊ दुहूँ मुख चन्द निरखत चखनि जुग आनन्द भरे॥
मन दिये विनती करत माधव मिलन हित ठाढ़े अरे।
बद्री नरायन जू निहारत मन निछावर हित धरे॥