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युग युगों से हैं मनाते / बाबा बैद्यनाथ झा
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युग युगों से हैं मनाते, पर्व यह भाई-बहन।
है यही अनमोल रिश्ता, श्रेष्ठतम सबसे गहन।।
वर्ष में इस एक दिन की, आस में दोनों रहे,
आज अनुपम रीति का ये, कर रहे हैं निर्वहन।
शक्ति के अनुसार भ्राता, दे सके उपहार जो,
वस्त्र भाईदूज का जो, शीघ्र ले भगिनी पहन।
श्रेष्ठ रिश्ते को निभाना, भी बड़ा ही धर्म है,
वृद्धजन कहते रहे हैं, शास्त्र का भी है कहन।
दुःख में भाई रहे जब, दर्द बहना को उठे,
एक भाई भी न करता, कष्ट बहनों के सहन।
रक्त का सम्बन्ध बाबा, शुद्ध सात्विक भाव का,
हो नहीं पाए कभी भी, आपसे इसका दहन।