भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यूँ न बेदर्द बनकर रहा कीजिए / मृदुला झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे म की तो कोई दवा कीजिए।

आप चाहत लिए घूमते हैं अगर,
मुफलिसों का सहारा बना कीजिए।

दर्द देकर उन्हें भूलना है अगर,
उसकी गलियों में यूँ मत फिरा कीजिए।

आप काँटों से बचकर चलें या नहीं,
बेवफ़ाओं से बचकर चला कीजिए।

जानो-दिल से है जो आप ही के लिए,
इस कदर तो न उसको छला कीजिए।