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ये किस रश्क-ए-मसीहा का मकाँ है / हैदर अली 'आतिश'
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ये किस रश्क-ए-मसीहा का मकाँ है
ज़मीं याँ की चहारूम आस्माँ है
ख़ुदा पिन्हाँ है आलम आश्कारा
निहाँ है गंज वीराना अयाँ है
तकल्लुफ़ से बरी है हुस्न-ए-ज़ाती
क़बा-ए-गुल में गुल-बूटा कहाँ है
पसीजेगा कभी तो दिल किसी का
हमेशा अपनी आहों का धुआँ है
बरंग-ए-बू हूँ गुलशन में मैं बुलबुल
बग़ल ग़ुंचे के मेरा आशियाँ है
शगुफ़्ता रहती है ख़ातिर हमेशा
क़नाअत भी बहार-ए-बे-ख़िजाँ है
चमन की सैर पर होता है झगड़ा
कमर तेरी है दस्त-ए-बाग़-बाँ है
बहुत आता है याद ऐ सब्र-ए-मिस्कीं
ख़ुदा ख़ुश रक्खे तुझ को तू जहाँ है
इलाही एक दिल किस किस को दूँ मैं
हज़ारों बुत है याँ हिन्दोस्ताँ है
सआदत-मंद किस्मत पर हैं शाकिर
हुमा को मग़्ज़-ए-बादाम उस्तख़्वाँ है