भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये कैसा मोड़ है, बे−रब्त रिश्ते−नाते हुए / अमित गोस्वामी
Kavita Kosh से
ये कैसा मोड़ है, बे−रब्त1 रिश्ते−नाते हुए
कहाँ मैं आ गया रस्म−ए−वफ़ा निभाते हुए
उसे ख़बर है मैं उसकी हँसी पे मरता हूँ
सो मुझको ग़म भी दिए उसने मुस्कुराते हुए
वो अपने माज़ी कुछ ऐसे बच के चलती है
मुझे नज़र भी न आ जाए आते जाते हुए
छुपे थे राज़ जो आँखों में, खुल गए सब पर
शब−ए−फ़िराक़ की बेदारियाँ2 छुपाते हुए
थमी हुई है वहीं अब भी कायनात कि जब
वो मुझको देख रही थी, नज़र बचाते हुए
1. असंबद्ध 2. अनिद्रा