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ये ख़ता बार-बार करते हैं / कांतिमोहन 'सोज़'
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ये ख़ता बार-बार करते हैं ।
हम तेरा इन्तज़ार करते हैं ।।
ज़िक्रे-गर्दो-ग़ुबार करते हैं ।
गोया फ़िक्रे-बहार करते हैं ।।
हम भी कोरी दुआ नहीं करते
जान तुम पर निसार करते हैं ।
बात चलती है जब मोहब्बत की
अपना चर्चा भी यार करते हैं ।
तू जज़ा बेपनाह देता है
हम खता बेशुमार करते हैं ।
जिनके कांधों पे सर सलामत है
कौन मानेगा प्यार करते हैं ।
सोज़ यूँ तो बुझे से रहते हैं
शायरी धारदार करते हैं ।।