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ये दुश्मनी ये हिक़ारत ये बेहिसी क्यों है / सिया सचदेव

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ये दुश्मनी ये हिक़ारत ये बेहिसी क्यों है
ताल्लुक़ात में यूँ बर्फ सी जमी क्यों है

ये शम्मा दिल में उम्मीदों की जल रही क्यों है
अँधेरे घर में ये थोड़ी सी रोशनी क्यों है

ख़फ़ा खफ़ा हैं वो मुझसे तो लोग सोचते हैं
ताल्लुक़ात की खेती हरी भरी क्यों है

अगर नहीं है ये आती बहार की आहट
तो फिर हवाओं में इस दरज़ा ताज़गी क्यों है

मिरे बगैर भी जीना अज़ीज़ हैं तुमको
तुम्हारी आँख में अश्क़ों की ये नदी क्यों है

असर हुआ ही नहीं जब दुआओं का मुझ पर
उदास दिल की तहों में छुपी ख़ुशी क्यों है

सिया तुझे अभी दीदार यार होना है
समझ में क्यूं नहीं आता ये तश्नगी क्यूं है