भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये भी अपना क़ुसूर है यारो / कांतिमोहन 'सोज़'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये भी अपना क़ुसूर है यारो ।
वो अगर दूर-दूर है यारो ।।

मेरे ऊपर वो जां निसार करे
माजरा कुछ ज़रूर है यारो ।

उसको दस्ते-सितम पे नाज़ बहुत
मुझको दिल पर ग़रूर है यारो ।

जान देना भी एक हुनर ठहरा
किसको इसका शऊर है यारो ।

शेख़ जन्नतनशीं हुआ शायद
उसके पहलू में हूर है यारो ।

हो न हो उसकी आमद-आमद है
आज तारों में नूर है यारो ।

सोज़ से आज मांग लो कुछ भी
आज वो पुरसरूर है यारो ।।