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ये भूखे गरीब बिचारे / दयाचंद मायना
Kavita Kosh से
यू भूखे गरीब बिचारे, थारी मनै दीवाली रोज
अ धन आले लोगों, थारै नहीं दया का खोज...टेक
मेहनत, मजदूरी का तोड़ा, कुछ तुम अटका द्यो सो रोड़ा
गरीबां का जाथर थोड़ा, कुछ महंगाई का बोझ...
राह म्हं शूल, छड़ी अड़ ज्यागी, विपता बहोत बड़ी अड़ ज्यागी
कोई इसी घड़ी छिड़ ज्यागी, खुस ज्यागी सारी मौज...
चोरी छूटम-छूट करैगी, तुम बोले तै शूट करैगी
थारे धन की लूट करैगी, या धर्मराज की फौज...
छन्द मोती दिया पिरो रील म्हं, ‘दयाचन्द’ कुछ सोच ढील म्हं
थारे लागो आग मिल म्हं, बल ज्यागा धक्कड़ बोझ...