भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये सच है—देह के बाहर भी देखना होगा / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
ये सच है देह के बाहर भी देखना होगा
मगर कभी —कभी अंदर भी देखना होगा
दुबक के बैठ गया था जो एक दिन मन में
तुम्हें तुम्हारा वही डर भी देखना होगा
रहोगे कितने दिनों तक किसी के घर मेहमान
नए शहर में, नया घर भी देखना होगा
हमारे जूते के अंदर पहुँच गया कैसे
जो चुभ रहा है, वो कंकर भी देखना होगा
लड़ाने वालों की रणनीति के तहत तुमको
‘बटेर’ के लिए ‘तीतर’ भी देखना होगा !
जो अवसरों के मुताबिक बदलता रहता है
उसे बदलने का अवसर भी देखना होगा
चलोगे ‘धार के विपरीत’ ज़िन्दगी में अगर
तो तुमको धार से लड़कर भी देखना होगा.