भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये सितम दिल पे यार करते हैं / कांतिमोहन 'सोज़'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये सितम दिल पे यार करते हैं ।
ख़्वाहिशे-ग़मगुसार करते हैं ।।

काश इज़हार की सकत होती
गो तमन्ना हज़ार करते हैं ।

याद करना कोई अज़ाब है क्या
है तो हम बार-बार करते हैं ।

हम कि ख़ामोश हो गए गोया
ज़िक्र बेइख़्तियार करते हैं ।

उसके आँसू भला रूकें क्यूँकर
वो जिसे अश्क़बार करते हैं ।

कौन दामन रफ़ू करे उसका
वो जिसे तार-तार करते हैं ।

सोज़ नादां हैं ख़ाक होकर भी
फ़िक्रे-बाग़ो-बहार करते हैं ।।