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योगी वही जो रँगै मन आपनो आन सुसँग मे ध्यान लगावै / अज्ञात कवि (रीतिकाल)

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योगी वही जो रँगै मन आपनो आन सुसँग मे ध्यान लगावै ।
सँत वही जो तजै ममता अरु आनन्द मे हरि के गुन गावै ।
पुत्र वही जो पिता को नवै अरु कै पुरुषारथ को दिखलावै ।
द्रव्य वही जो उठै परस्वारथ मित्र वही जो विपत्ति बटावै ।


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।