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रंग-राग / प्रताप सहगल
Kavita Kosh से
हरियाली जब
यौवन का राग अलापती
हमारे दरवाज़े पर खड़ी हो
और उसकी आंखों से
झरता हो
स्वप्निल आकाश
आकाश से झांकती हो
आशीर्वचनी मुद्राएं
तो यह वक्त
फिर से जवान होने का है
फिर से जवान होकर
आओ बिखेरे कोई नया रंग
रंग में हो यौवन
रंग में हो राग
रंग में हो उमंग
आओ बिखेरे कोई नया रंग।