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रंग सारे थे, हम नहीं थे वहां / ध्रुव गुप्त
Kavita Kosh से
रंग सारे थे, हम नहीं थे वहां
सौ सहारे थे, हम नहीं थे वहां
लफ़्ज़ खो आए थे मानी अपने
कुछ इशारे थे हम नहीं थे वहां
रात दरिया में बहुत पानी था
दो किनारे थे हम नहीं थे वहां
दरमियां जाने क्या उदासी थी
ग़म के मारे थे हम नहीं थे वहां
गरचे हर दिन तेरी तलाश रही
तुम हमारे थे, हम नहीं थे वहां
सबकी ज़द्दोजहद में साथ रहे
चांद-तारे थे, हम नहीं थे वहां
जिस जगह फ़ैसला हुआ अपना
लोग सारे थे, हम नहीं थे वहां