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रख दूँ प्यासे अधर नदी के धारे पर / रंजना वर्मा

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रख दूँ प्यासे अधर नदी के धारे पर
ले चल माझी मेरी नाव किनारे पर

साँसों से टकरा कर प्राण महक जायें
जल जायेंगे होंठ मधुर अंगारे पर

रातों में भी नींद नहीं अब आयेगी
आँखे टिकी रहेंगी किसी सितारे पर

कलियाँ खिल कर फूल बनेंगी रातों में
विहँसेगी चाँदनी घिरे अँधियारे पर

डोली चढ़ी पवन के खुशबू डोल रही
खिल कर रजनीगन्धा बाट निहारे पर

चक्रवाक जुगनू की पांतों पर उतरे
देखे शशि को व्याकुल करुण पुकारे पर

उछले मछली गिरे रेत पर जब तड़पे
जीवन वारे विरहिन जैसे प्यारे पर