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रविवारे मत आना / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
मुझ निर्धन का धन है—
एक दिन
रविवारे मत आना
धीमी दिनचर्या के
आस-पास अपनापन
दर्पण का एक वचन
मुश्किल से मिलता है
साँचे का लौह-बदन
एक दिन पि-घ-ल-ता है
और किसी दिन चाहे आ जाना
मत आना, रविवारे मत आना