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रविवार और कुछ लोग : चार / इंदुशेखर तत्पुरुष
Kavita Kosh से
मैं सोचता हूं
उन लोगों के बारे में
जिनके पूरे सप्ताह
नहीं आता कभी कोई रविवार
क्योंकि रविवार का आना उनके घर
होता है एक अपशकुन की तरह
जैसे बैठ जाए चूल्हा
मिट्टी का
मूसलाधार में।
सोचकर सहम जाती है घरवाली
और बच्चे उदास।
सर्दी-गर्मी-आंधी-बरसात
हारी-बीमारी
ये कर्मयोगी मुंह अंधेरे
निकल पड़ते काम पर।