भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राग-विराग : आठ / इंदुशेखर तत्पुरुष

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम !
इतनी ही जिद्दी
हो, तो लो, दिखाओ
पूरी करके अपनी जिद
मेरे सपनों में आना छेड़ दो।

तुम !
इतने बेशर्म हो कि,
आने के सारे रास्ते
बंद कर दिए तो भी
पलक झपकते ही
आ धमकते
पलकों के भीतर।