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राघवेन्द्र राज्य में सुधर्म का विरोध है / आनन्द बल्लभ 'अमिय'
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सिन्धु-सी धरी उमंग भावना अबोध है।
हीय में सुपंथ का अभी प्रचंड शोध है।
खार में तलाशते रहे प्रसून मञ्जरी
किन्तु चित्त में भरा अतुल्य कुत्स क्रोध है।
शून्य सिद्धि पा गये विरञ्चि पर टिकी नजर,
राघवेन्द्र राज्य में सुधर्म का विरोध है।
पा गये सुकीर्ति संपदा, रहे ठगे-ठगे
भ्रांतचित्त में मगर असत्य, छल प्रमोद है।
देव तुल्य है वही चले सुपंथ धर्म जो
सत्य है वही मनुज जिसे अनिष्ट बोध है।