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राजा रानी किसी का पानी / रमाशंकर यादव 'विद्रोही'

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राजा रानी किसी का पानी नहीं भरते हैं हम
सींच कर बागों को अपने अब हरा करते हैं हम।

शर्म से सिकुड़ी हुई इस देह को हैं तानते
दोस्तो, अपने झुके कन्धे खड़ा करते हैं हम।

ऐसा करने में है जलता ख़ून, तुम मत खेल जानो
मोम जैसे दिल को पत्थर-सा कड़ा करते हैं हम।

मान जाएँ हार अपने ऐसी तो आदत नहीं
बाद मरने के भी काफ़िर मौत से लड़ते हैं हम।

आग भड़काने के पीछे अपना ही घर फूँक डालें
सोचिएगा मत कि ख़ाली शायरी करते हैं हम।