Last modified on 24 फ़रवरी 2016, at 16:25

रातेॅ कैन्है डरावै छै / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

रातें कैन्है डरावै छै
लपकी किरिन दिखावै छै।

आधोॅ पहर रात के बादे
है के गीत सुनावै छै।

डोलै गाछी के पता, तेॅ
लागै कोय बुलावै छै।

सुख की सिखलैतै ओत्तेॅ
जत्तेॅ दुख सिखलावै छै।

जीवन छै तेॅ मौतो भी
कैन्हें कोय डरावै छै।

हाय-हाय करियो की पावै
माँटी ही तेॅ पावै छै।

जेकरा देखोॅ सारस्वतोॅ केॅ
गजल-बहर बतलावै छै।