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रात का दरवाज़ा / सविता सिंह
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कितनी अपनी है अब भी रात
सुनती है किस धीरज से रुदन विलाप
रहस्य की तरह बचा उल्लास
किस तरह छिपाये रखती है
कौतुहल उस स्वप्न के आगमन का
जिसे पाने के बाद वह सदा के लिए बदल जायेगी
अब भी कितनी अपनी
बचाये हुए उस नीले दरवाजे को
जिससे अनन्त निकला जा सकता है यातनाओं के पार