रात दिन अपने घर में रहता है
जाने कैसे सफर में रहता है
बच के रहता है अपनी आँखों से
वो जो सबकी नजर में रहता है
मसअले क्या जमीन के समझे
वो तो शम्सो-कमर में रहता है
जेह्न अपना कहीं भी जाये मियां
दिल तो खौफ़ो-ख़तर में रहता है
अपना ईमां बदल भी जाए मगर
इक नजर के असर में रहता है
शम्सो-कमर = सूरज और चांद, खौफ़ो-ख़तर = भय/डर