रामाज्ञा प्रश्न / चतुर्थ सर्ग / सप्तक २ / तुलसीदास
घर घर अवध बधावने, मुदित नगर नर नारि।
बरषि सुमन हरषहिं बिबुध, बिधि त्रिपुरारि मुरारि॥१॥
अयोध्याके प्रत्येक घरमें बधाई बज रही हैं। नगरके नर नारी सब आनन्दित हैं। पुष्प - वर्षा करके देवता, ब्रह्माजी, शंकरजी और विष्णुभगवान् प्रसन्न हो रहे हैं॥१॥
(प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)
मंगल गान निसान नभ, नगर मुदित नर नारि।
भूप सुकृत सुरतरु निरखि फरे चारु फल चारि॥२॥
आकाशमें (देवताओंद्वारा) मंगल-नाग हो रहा हैं तथा नगारे बज रहे हैं, नगरके स्त्री-पुरुष महाराज दशरथके पुण्यरूपी कल्पवृक्षमें (पुत्ररूपी) चार सुन्दर फल लगे देखकर आनन्दमग्न हैं॥२॥
(प्रश्न फल शुभ है।)
पुत्र काज कल्यान नृप दिए बहु भाँति।
रहस बिबस रनिवास सब मुद मंगल दिन राति॥३॥
पुत्रोंके कल्याणके लिये महाराजने बहुत प्रकारसे दान दिये। पूरा रनिवास आनन्दमें मग्न है। दिन-रात आनन्दमंगल हो रहा है॥३॥
(प्रश्न फल श्रेष्ठ है।)
अनुदिन अवध बधावने, नित नव मंगल मोद।
मुदित मातु पितु लोग लखि रघुबर बाल बिनोद॥४॥
अयोध्यामें प्रतिदिन बधाइके बाजे बज रहे हैं। नित्य नवीन आनन्द- मंगल हो रहा है। श्रीरघुनाथजीकी बालक्रिडा़ देखकर माताएँ, पिता तथा सब लोग प्रसन्न होते हैं॥४॥
(प्रश्न -फल उत्तम है।)
करनबेध चूडा़करन लौकिक बैदिक काज।
गुरु आयसु भूपति करत मंगल साज समाज॥५॥
गुरुदेव की आज्ञा से महाराज मंगल-साज सजाकर कर्णवेध, चूडा़करण (मुण्डन) आदि लौकिक-वैदिक विधियेंसहित वे समाजके साथ करते हैं॥५॥
(प्रश्न-फल शुभ है।)
राज अजिर राजत रुचित कोसल पालक बाल।
जानु पानि चर चरित बर सगुन सुमंगल माल॥६॥
राजभवनके आँगनमें कोसलनरेश महाराज दशरथके सुन्दर बालक घुटनों तथा हाथोंके बल चलते एवं सुन्दर चरित (क्रीडा़) करते सुशोभित होते हैं। यह शकुन सुमड्गलोंकी माला (सदा कल्याणकारी) है॥६॥
लहे मातु पितु भोग बस सुत जग जलधि ललाम।
पुत्र लाभ हित सगुन सुभ, तुलसी सुमिरहु राम॥७॥
माता पिताने सौभाग्यवश संसार-सागरमें रत्नुस्वरूप पुत्र पाये। तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीरामका स्मरण करो, यह शकुन पुत्र-प्राप्तिके लिये शुभ है॥७॥