भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रामाज्ञा प्रश्न / तृतीय सर्ग / सप्तक ४ / तुलसीदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सकल काज सुभ समउ भल, सगुन सुमंगल जानु।
कीरति बिजय बिभूति भलि, हियँ हनुमानहि आनु॥१॥
सभी कामोंके लिये उत्तम शुभ समय है। इस शकुनको कल्याणदायक समझो। हृदयमें श्रीहनुमान्‌जीका स्मरण करो; कीर्ति, विजय तथा श्रीष्ठ ऐश्वर्य प्राप्त होगा॥१॥

सुमिरि सत्रुसूदन चरन चलहु करहु सब काज।
सत्रु पराजय निज बिजय, सगुन सुमंगल साज॥२॥
श्रीशत्रुघ्नजीके चरणोंका स्मरण करके चलो, सब काम करो। यह शकुन शत्रुकी पराजय एवं अपनी विजय तथा कल्याणकी सामग्री जुटानेवाला है॥२॥

भरत नाम सुमिरत मिटहिं कपट कलेस कुचालि।
नीति प्रीति परतीति हित, सगुन सुमंगल सालि॥३॥
श्रीभरतजीके नामका स्मरण करते ही कपट, क्लेश और (दुष्टोंकी) कुचाल (दुर्नीति) मिट जाती है॥ नीति-व्यवहार, प्रेम तथा विश्वासके लिये यह शकुन मंगलदायक है॥३॥

राम नाम कलि कामतरु, सकल सुमंगल कंद।
सुमिरत करतल सिद्धि जग, पग पग परमानंद॥४॥
श्रीरामानाम कलियुगमें कल्पवृक्षके समान (अभीष्टदाता) है, समस्त श्रेष्ठ मंगलोंका मूल है, उसका स्मरण करनेसे संसारमें सब सिद्धियाँ हाथमें आ जाती हैं और पद-पदपर परम सुख प्राप्त होता है॥४॥
(प्रश्नस-फल शुभ है।)

सीता चरन प्रनाम करि, सुमिरि सुनाम सनेम।
सुतिय होहिं पतिदेवता, प्राननाथ प्रिय प्रेम॥५॥
श्रीजानकीजीके चरणोंमे प्रणाम करके और उनके सुन्दर नामका नियमपूर्वक स्मरण करके उत्तम स्त्रियाँ पतिव्रता होती हैं और प्राणनाथ प्रियतम (पति) का प्रेम प्राप्त करती हैं॥५॥
(स्त्रियों को पति प्रेम की प्राप्तिका सूचक शकुन है।)

लखन ललित मूरति मधुर सुमिरहु सहित सनेह।
सुख संपति कीरति बिजय सगुन सुमंगल गेह॥६॥
श्रीलक्ष्मणजीकी मधुरिमामयी सुन्दर मूर्तिका प्रेमपुर्वक स्मरण करो। यह शकुन सुख, सम्पति, कीर्ति, विजय आदि सुमंगलोंका घर ही है॥६॥

तुलसी तुलसी मंजरीं, मंगल मंजुल मूल।
देखत सुमिरत सगुन सुभ, कलपलता फल फूल॥७॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि तुलसीकी मजरीं उत्तम कल्याणकी जड़ है। उसका दर्शन और स्मरण शुभ शकुन है। वह कल्पलताके फलपुष्पके समान (अभीष्ट फल देनेवाली) है॥७॥
(शकुन-फल श्रेष्ठ है।)