रामाज्ञा प्रश्न / द्वितीय सर्ग / सप्तक ७ / तुलसीदास
सुनि मुनि आयसु प्रभु कियो पंचबटी बर बास।
भइ महि पावनि परसि पद, भा सब भाँति सुपात॥१॥
मुनि (अगस्त्यजी) की आज्ञा पाकर प्रभु श्रीरामने सुन्दर पत्र्चवटीमें निवास किया। उनके श्रीचरणोंका स्पर्श करके वह (दण्डक वनकी शापग्रस्त) भूमि पवित्र हो गयी, सब प्रकारसे वहाँ सुख सुविधा हो गयी॥१॥
(विपत्ति दूर होकर सुख होगा)
सरित सरोबर सजल सब जलज बिपुल बहु रंग।
समउत सुहावन सगुन सुभ राजा प्रजा प्रसंग॥२॥
सब नदियाँ और सरोवर जलसे भरे रहने लगे। उनमें अनेक रंगोंके कमल खिल गये। बडा़ सुहावना समय हो गया। राजा-प्रजाके सम्बन्धमें यह शकुन शुभ है॥२॥
बिटप बेलि फुलहि फलहिं, सीतल सुखद समीर।
मुदित बिहँग मृग मधूप गन बन पालक दोउ बीर॥३॥
वृक्ष और लताएँ फुलती फलते हैं, सुखदायी शीतल वायु चलती है; पक्षी तथा भैरे आनन्दमें है; क्योंकि दोनों भाई (श्रीराम लक्ष्मण) अब वनकी रक्षा करनेवाले हैं॥३॥
(प्रश्न फल श्रेष्ठ है ।)
मोदाकर गोदावरी, बिपिन सुखद सब काल।
निर्भय मुनि जप तप करहिं, पालक राम कृपाल॥४॥
गोदावरी नदी आनन्ददायिनी है और वन सभी समय सुखदायी है। अब कृपालु श्रीरामके रक्षक होनेसे वहाँ मुनिगण भयरहित होकर जप तप करते हैं॥४॥
(साधन भजन निर्विघ्न सफल होगा ।)
भेंट गीध रघुराज सन, दुहूँ दिसि हॄदयँ हुलासु।
सेवक पाइ सुसाहिबहि, साहिब पाइ सुदासु॥५॥
श्रेरघुनाथजीसे गीधराज जटायुकी भेंट होनेपर दोनों ओर चित्तमें आनन्द हुआः सेवक (जटायु) को पाकर उत्तम स्वामी (श्रीराम) को और स्वामी (श्रीराम) को पाकर उत्तम सेवक (जटायु) को॥५॥
(सेवा और भक्ति सम्बन्धी प्रश्नाका फल शुभ है ।)
पढहिं पढा़वहिं मुनि तनय आगम निगम पुरान।
सगुन सुबिद्या लाभ हित जानब समय समान॥६॥
मुनि बालक परस्पर वेद, स्मृति पुराण पढते-पढतें हैं। यह शकुन समयके अनुसार उत्तम विद्याकी प्राप्तिके लिये लाभप्रद समझना॥६॥
निज कर सींचित जानकी तुलसी लाइ रसाल।
सुभ दूती उनचाल भलि बरषा कृषी सुकाल॥७॥
श्रीजानकीजी आमके वृक्ष लगाकर उन्हें अपनें हाथोंसे सींचती हैं। तुलसीदासजी कहते हैं कि दुसरे सर्गका यह उनचासवाँ दोहा अच्छी वर्षा, उत्तम खेती तथा सुकालका शुभसूचक है॥७॥