भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रावण ओर मंदोदरी / तुलसीदास/ पृष्ठ 5
Kavita Kosh से
रावण ओर मंदोदरी
( छंद संख्या 25 से 26 )
(25)
जाके रोष-दुसह-त्रिदोष-दाह दुरि कीन्हे,
पैअत न छत्री-खोज खोजत खलकमें।
माहिषमतीको नाथ साहसी सहस बाहु,
समर-समर्थ नाथ! हेरिए हलकमें।।
सहित समाज महाराज सो जहाजराजु
बूड़ि गयो जाके बल-बारिधि -छलकमें।
टूटत पिनाककें मनाक बाम रामसे, ते,
नाक बिनु भए भृगुनायकु पलकमें।25।
(26)
कीन्हीं छोनी छत्री बिनु छोनिप-छपनिहार,
कठिन कुठार पानि बीर-बानि जानि कै।
परम कृपाल जो नृपाल लोकपालन पै,
जब धनुहाई ह्वैहै मन अनुमानि कै।।
नाकमें पिनाक मिस बामता बिलोकि राम,
रोक्यो परलोक लोक भारी भ्रमु भानि कै।
नाइ दस माथ महि, जोरि बीस हाथ,
पिय! मिलिए पै नाथ! रघुनाथ पहिचानि कै।27।