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रेल / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
छुक-छुक करतेॅ आवै रेल।
की रं हन-हन करलेॅ आवै
धुइयाँ सेॅ सब भरलेॅ आवै
रस्ता सेॅ उतरै नै हेट
एक्के मूँ छै, सोलह पेट
सत्तर गोड़ोॅ सेॅ करै छै खेल
छुक-छुक करतेॅ आवै रेल ।
कर्रोे ॅ-कर्रो ॅ देह-हाथ हेकरोॅ
कोयला सें मूँ भरलोॅ जेकरोॅ
पानी पीयै छै सोॅ-सोॅ घैलौ
राकसे रं चिकरै उमतैलोॅ
तहियो लोगोॅ सेॅ हेकरा मेल
छुक-छुक करतेॅ आवै रेल ।