रै तुम सुणों गोर से, वीरों की कुर्बानी / दयाचंद मायना
रै तुम सुणों गोर से, वीरांे की कुर्बानी...टेक
महाराणा प्रताप वीर बहुत कष्ट ठाता रहा
जंगल, पहाड़, झाड़ियां मैं, ठोकर न्यूंए खाता रहा
कन्द, फूल, फल खाकै नै, जीवन को बिताता रहा
वीर शिवाजी मरहेठे नै, कभी ना झुकाई स्यान
मुगलों कै ना काबू आया, देश पै खो दी ज्यान
हरिसिंह बन्दा बैरागी, देश पै हुए बलिदान
राजपाल भी छुरी खा गया, समझी ना जिन्दगानी...
भगत सिंह से वीरां नै, आन्दोलन उठाया न्यारा
हँसते-हँसते फाँसी खाग्या, भारत माँ का राजदुलारा
राजगुरु सुखदेव भी साथ मैं, इनकी ललकारा
लाजपत राय शेर लाहौर में घबराया नहीं
डण्डां गैल्या पिटता रह्या, कदम को हटाया नहीं
ऊधम सिंह जैसा वीर, मुड़कै वापिस आया नहीं
असम्बली में बम्ब फेंक दिया, कोन्या दहशत मानी...
ये दोनूं वीर काम आए, सरहद की दीवार म्हं
श्रद्धानन्द बलिदान हुए, दिल्ली के बाजार म्हं
तिलक, गोखले, मालवीय, रोशन हैं संसार म्हं
जलियाँ वाले बाग के अन्दर, बहुत वीर मारे गये
खुदी राम बोस वीर, मौत के घाट तारे गए
वीर हकीकत राय भी, सबतै छंट न्यारे गए
भारत का हर बच्चा गावै वीरों की अमर कहानी...
छोटू राम चौधरी नै, देा को जगाया था
ओम नाम का झण्डा, हर जगह पै लहराया था
पूज्य बापू गांधी जी ने, आन्दोलन उठाया था
देश के लिए गांधी जी, कष्ट तन पै ठाते रहे
जेल से घबराया नहीं, क्रान्ति को जगाते रहे
नेताजी सुभाष चन्द्र, कदम को बढ़ाते रहे
कह ‘दयाचन्द’ बढ़ो अगाड़ी, तुम आजाद सेनानी...