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रोशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम / हसरत मोहानी

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रोशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम
दहका हुआ है आतिश-ए-गुल से चमन तमाम

हैरत गुरूर-ए-हुस्न से शोख़ी से इज़तराब
दिल ने भी तेरे सीख लिए हैं चलन तमाम

अल्लाह रे हुस्न-ए-यार की ख़ूबी के खु़द-ब-खु़द
रंगीनियों में डूब गया पैरहन तमाम

देखो तो हुस्न-ए-यार की जादू निगाहियाँ
बेहोश इक नज़र में हुई अंजुमन तमाम