भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लक्ष्मी नारायण स्वयं, नारायण श्री रूप / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
(राग ईमन)
लक्ष्मी नारायण स्वयं, नारायण श्री रूप।
एक तव दो बन रहें, जैसे छाया-धूप॥
मिलित एक ही देहमें दोनों बन अर्धान्ग।
परम सुशोभित हो रहे, श्याम-स्वर्ण-दिव्यान्ग॥
गदा-चक्र हरि-हाथमें, श्रीकर शङ्ख सुकञ्ज।
पीत-नील पट रुचिर अति भूषण आभा-पुञ्ज॥
कमलासन, माला विमल, तिलक बिंदु शुचि भाल।
हेम-मुकुट सुषमा मधुर अमित महव विशाल॥