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लक्ष्मी नारायण स्वयं, नारायण श्री रूप / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(राग ईमन)
लक्ष्मी नारायण स्वयं, नारायण श्री रूप।
 एक तव दो बन रहें, जैसे छाया-धूप॥
 मिलित एक ही देहमें दोनों बन अर्धान्ग।
 परम सुशोभित हो रहे, श्याम-स्वर्ण-दिव्यान्ग॥
 गदा-चक्र हरि-हाथमें, श्रीकर शङ्ख सुकञ्ज।
 पीत-नील पट रुचिर अति भूषण आभा-पुञ्ज॥
 कमलासन, माला विमल, तिलक बिंदु शुचि भाल।
 हेम-मुकुट सुषमा मधुर अमित महव विशाल॥