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लफ्ज़ों का पुल / निदा फ़ाज़ली
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मस्ज़िद का गुम्बद सूना है
मन्दिर की घण्टी ख़ामोश
जुज़दानों में लिपटे सारे आदर्शों को
दीमक कब की चाट चुकी है
रंग गुलाबी
नीले
पीले
कहीं नहीं हैं
तुम उस जानिब
मैं इस जानिब
बीच में मीलों गहरा ग़ार
लफ्ज़ों का पुल टूट चुका है
तुम भी तन्हा
मैं भी तन्हा।