भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लब पे है फ़रियाद अश्कों की रवानी हो चुकी / बेहज़ाद लखनवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लब पे है फ़रियाद अश्कों की रवानी हो चुकी
इक कहानी छिड़ रही है इक कहानी हो चुकी

मेहर के पर्दे में पूरी दिल-सितानी हो चुकी
बंदा-परवर रहम कीजिए मेहरबानी हो चुकी

मेरा दिल ताका गया और ओ जफ़ा के वास्ते
जब कि पूरे रंग पर उन की जवानी हो चुकी

जाइए भी क्यूँ मुझे झूठी तशफ़्फ़ी दीजिए
आप से और मेरे दिल की तर्जुमानी हो चुकी

आ गया ऐ सुनने वाले अब मुझे पास-ए-वफ़ा
अब बयाँ रूदाद-ए-दिल मेरी ज़बानी हो चुकी

आख़िरी आँसू मिरी चश्म-ए-अलम से गिर चुका
सुनने वालो ख़त्म अब मेरी कहानी हो चुकी

हम भी तंग आ ही गए आख़िर नियाज़-ओ-नाज़ से
हाँ ख़ुशा क़िस्मत कि उन की मेहरबानी हो चुकी

सुनने वाले सूरत-ए-तस्वीर बैठे हैं तमाम
हज़रत-ए-‘बहज़ाद’ बस जादू-बयानी हो चुकी