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लम्बी ख़ामोश राहों से / मरीना स्विताएवा
Kavita Kosh से
लम्बी ख़ामोश राहों में
लम्बे ख़ामोश क़दमों से...
हृदय जैसे पानी में फेंका पत्थर
फैलती
और अधिक फैलती
लहरों के बीच...
वह गहरा जैसे पानी, अंधकार भरा जैसे पानी ।
हमेशा के लिए सुरक्षित छाती के भीतर हृदय,
वहाँ से मुझे निकालना है उसे बाहर,
मैं कहना चाहती हूँ उससे
आओ वापिस अब मेरी छाती में ।
रचनाकाल : 27 अप्रैल 1920
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह