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लाइन में लगे हुए पेट / रामकुमार कृषक
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लाइन में लगे हुए पेट
पेटों की पोखर में सूख
सूखे में मछली-सी भूख !
अनचाहे
भार की तरह
सांसों को उम्र ढो रही
पलड़ों के
क्रॉस पर टँगी
तड़पन भी योग हो रही,
योगों में विस्फारित आँख
आँखों में अनथाही हूक
हूकों में मानसिक मयूख !
लँगड़ी
परकार की तरह
मेधा इक बिन्दु की हुई
जी भरकर
पेंसिलें बदल
खींच रही वृत्त ही, मुई,
वृत्तों में बिखराए बीज
बीजों में गर्भायित भ्रूण
भ्रूणों में सूख रहे रूख़ !
13 फ़रवरी 1973